Ad

Rabi crop

सरसों की फसल में सफेद रतवे का प्रबंधन

सरसों की फसल में सफेद रतवे का प्रबंधन

सरसों की फसल कई रोगों से प्रभावित होती है। जिससे की किसानो को कम पैदावार प्राप्त होती है। सफेद रतवे (White Rust) रोग से फसल को अधिक नुकसान होता है। आज इस लेख में हम आपको सफेद रतवे (White Rust) की रोकथाम के बारे में जानकारी देंगे जिससे की आप समय से फसल में इस बीमारी का नियंत्रण कर सके। 

सरसों की फसल में सफेद रतवे (White Rust) से बचाव के लिए कुछ महत्वपूर्ण निर्देश निम्नलिखित हैं:

सही बीज बुवाई :

 सबसे पहले आपको ध्यान देना है कि फसल की बुवाई के लिए स्वस्थ बीजों का चयन करें जो रोगों से मुक्त हों। स्वस्थ बीजों का चयन करने से फसल में ये रोग नहीं आएगा।   

फसल की समय पर बोना:

 समय पर सरसों की बुवाई की जानी चाहिए ताकि फसल में बीमारी का प्रसार कम हो। देरी से बुवाई की गयी फसल में अधिक रोग का खतरा होता है। कई बार रोग अधिक लग जाता है जिससे आधी पैदावार कम हो जाती है। 

समुचित जल सिंचाई:

जल सिंचाई को समुचित रूप से प्रबंधित करें ताकि पौधों पर पानी जमा नहीं हो, जिससे सफेद रतवे का प्रसार कम हो। फसल में अधिक नमी होने के कारण भी रोग अधिक लगता है। 

ये भी पढ़ें:
रबी सीजन की फसलों की बुवाई से पहले जान लें ये बात, नहीं तो पछताओगे

उचित फफूंदनाशकों का प्रयोग:

सरसों की सफेद रतवे के खिलाफ उचित फफूंदनाशकों का प्रयोग करें। कृषि विज्ञानी से सलाह लें और सुरक्षित रोगनाशकों का चयन करें। सफेद रतवा के नियंत्रण के लिए खड़ी फसल में मैंकोजेब(एम 45) फफुंदनाशक 400 से 500ग्राम को 200/250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से 15 दिन के अंतर पर कम से कम 2 छिड़काव अवश्य करें जिससे सफेद रतवा का नियंत्रण संभव हो सकता है।

फसल की देखभाल:

 फसल की देखभाल के लिए समय समय पर पौधों की सुरक्षा और मूल से देखभाल करें।

प्रभावित पौधों का हटाएं:

यदि किसी पौधे पर सफेद रतवे के प्रमुख संकेत हैं, तो उन्हें तुरंत उखाड़ कर मिट्टी में दबा दें ताकि बीमारी और फैलने से बचा जा सके।उचित तकनीकी तरीके का प्रयोग करें, जैसे कि स्थानीय परिस्थितियों, जलवायु और मौसम की विशेषताओं के आधार पर सिंचाई और पोषण का प्रबंधन करें।इन उपायों का अनुसरण करके, सरसों की फसल में सफेद रतवे से बचाव किया जा सकता है। ध्यान रहे कि स्थानीय कृषि विभाग या कृषि विज्ञानी से सलाह लेना हमेशा उत्तम होता है ताकि आपको विशेष रूप से अपने क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त नियंत्रण उपायों की जानकारी मिले।

जौ की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

जौ की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जौ कई उत्पाद निर्मित करने में काम आता है, जैसे दाने, पशु आहार, चारा और अनेक औद्यौगिक उपयोग (शराब, बेकरी, पेपर, फाइबर पेपर, फाइबर बोर्ड जैसे उत्पाद) बनाने के काम आता है। जौ रबी मौसम में बोई जाने वाली प्रमुख फसलों में से एक है, विगत कुछ वर्षों में बाजार में जौ की मांग बढ़ने से किसानों को इसकी खेती से मुनाफा भी हो रहा है। भारत में बिहार, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश और जम्मू व कश्मीर में जौ की खेती की जाती है। भारत में आठ लाख हेक्टेयर भूमि में प्रति वर्ष तकरीबन 16 लाख टन जौ का उत्पादन होता है।

जौ का इस्तेमाल कई प्रकार के उत्पादों को बनाने में किया जाता है

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि जौ कई उत्पादों में काम आता है। जैसे कि दाने,
पशु आहार, चारा और अनेक औद्यौगिक उपयोग (शराब, बेकरी, पेपर, फाइबर पेपर, फाइबर बोर्ड जैसे उत्पाद) निर्माण के काम आता है। जौ की खेती ज्यादातर कम उर्वरा शक्ति वाली भूमियों में क्षारीय एवं लवणीय भूमियों में और पछेती बुवाई की परिस्थितियों में की जाती है। परंतु, उन्नत विधियों द्वारा जौ की खेती करने से औसत उत्पादन ज्यादा प्राप्त किया जा सकता है। ज्यादा पैदावार पाने के लिए अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित किस्मों का चुनाव करें। जौ की प्रजातियों में उत्तरी मैदानी क्षेत्रों के लिए ज्योति, आजाद, के-15, हरीतिमा, प्रीति, जागृति, लखन, मंजुला, नरेंद्र जौ-1,2 और 3, के-603, एनडीबी-1173 जौ की प्रमुख प्रजातियां हैं। यह भी पढ़ें: खरीफ सीजन क्या होता है, इसकी प्रमुख फसलें कौन-कौन सी होती हैं

जौ की बुवाई का उपयुक्त समय

जौ के लिए वक्त पर बुवाई करने से 100 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। अगर बुवाई विलंभ से की गई है तो बीज की मात्रा में 25 प्रतिशत का इजाफा कर देना चाहिये। जौ की बुवाई का वक्त नवम्बर के पहले सप्ताह से आखिरी सप्ताह तक होता है। लेकिन, विलंभ होने पर बुवाई मध्य दिसम्बर तक की जा सकती है। बुवाई पलेवा करके ही करनी चाहिये और पंक्ति से पंक्ति का फासला 22.5 सेमी. और देरी से बुवाई की स्थिति में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेमी. रखनी चाहिये।

बीजोपचार और बेहतरीन गुणवत्ता वाले बीज की पैदावार में भूमिका

बीजोपचार ज्यादा पैदावार प्राप्त करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। बहुत से कीट एवं बीमारियों के प्रकोप को रोकने के लिए बीज का उपचारित होना बेहद जरूरी है। कंडुआ व स्मट रोग पर लगाम लगाने के लिए बीज को वीटावैक्स या मैन्कोजैब 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। दीमक पर नियंत्रण के लिए 100 किग्रा. बीज को क्लोरोपाइरीफोस (20 ईसी) की 150 मिलीलीटर या फोरमेंथियोन (25 ईसी) की 250 मिलीलीटर द्वारा बीज को उपचारित करके बिजाई करनी चाहिये। भूमि और उसकी तैयारी जौ की खेती अनेक प्रकार की भूमियों जैसे बलुई, बलुई दोमट या दोमट जमीन में की जा सकती है। परंतु, दोमट भूमि जौ की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है। क्षारीय व लवणीय भूमियों में सहनशील किस्मों की बुवाई करनी चाहिये। खेत में जल निकासी की बेहतर व्यवस्था होनी चाहिये। यह भी पढ़ें: जौ की खेती में फायदा ही फायदा

जौ की खेती हेतु भूमि व उसकी तैयारी

जौ की अत्यधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए भूमि को बेहतर ढ़ंग से तैयार करना चाहिये। खेत में खरपतवार नहीं रहना चाहिये और अच्छी प्रकार से जुताई करके मृदा भुरभुरी बना देनी चाहिये। खेत में पाटा लगाकर खेत समतल एवं ढेलों रहित कर देनी चाहिये। खरीफ फसल की कटाई के उपरांत डिस्क हैरो से जुताई करनी चाहिये। इसके उपरांत दो क्रोस जुताई हैरो से करके पाटा लगा देना चाहिये। आखिरी जुताई से पूर्व खेत में 25 किलो. एन्डोसल्फॅान (4 प्रतिशत) या क्यूनालफॉस (1.5 प्रतिशत) या मिथाइल पैराथियोन (2 प्रतिशत) चूर्ण को समान रूप से छिड़कना चाहिये। सिंचाई जौ की बेहतरीन पैदावार प्राप्त करने के लिए चार-पांच सिंचाई पर्याप्त होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन पश्चात करनी चाहिये। इस वक्त पौधों की जड़ों की उन्नति होती है। दूसरी सिंचाई 40-45 दिन उपरांत देने से बालियां अच्छी लगती हैं। इसके उपरांत तीसरी सिंचाई फूल आने पर और चौथी सिंचाई दाना दूधिया अवस्था में आने की स्थिति पर करनी चाहिये।
जौ की फसल का शानदार उत्पादन पाने के लिए इन बातों की जानकारी बेहद आवश्यक

जौ की फसल का शानदार उत्पादन पाने के लिए इन बातों की जानकारी बेहद आवश्यक

जौ की खेती रेतीली से लगाकर मध्यम दोमट मृदा तक में की जा सकती है। परन्तु, इसकी शानदार उपज प्राप्त करने के लिए समुचित जल निकासी एवं अच्छी उर्वरकता वाली दोमट मृदा उपयुक्त मानी जाती है। जौ की खेती बाकी तरह की भूमि जैसे-लवणीय, क्षारीय अथवा हल्की मृदा में भी की जा सकती है।

बुआई का समय

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इसकी बिजाई के लिए जो बीज इस्तेमाल में लाया जाए, वह रोगमुक्त, प्रमाणित क्षेत्र के अनुसार उन्नत किस्म का होना चाहिए। बीजों में किसी अन्य किस्म के बीज उपलब्ध नहीं होने चाहिए। बोने से पूर्व बीज के अंकुरण का परीक्षण अवश्य कर लेना चाहिए। जौ रबी मौसम की फसल है, जिसे सर्दी के मौसम में उत्पादित किया जाता है। सामान्य तौर पर इसकी बिजाई अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक की जाती है।

ये भी पढ़ें:
जौ की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

सिंचाई 

असिंचित क्षेत्राें में 20 अक्टूबर से 10 नवंबर तक जौ की बिजाई करनी चाहिए। वहीं, सिंचित क्षेत्राें में 25 नवंबर तक बिजाई कर देनी चाहिए। पछेती जौ की बिजाई 15 दिसंबर तक कर देनी चाहिए।

बीज एवं बीजाेपचार

जौ के लिए 80-100 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टयर बिजाई के लिए उपयुक्त है। जौ की बिजाई हल के पीछे कूंड़ों में अथवा सीडड्रिल से 20-25 सें.मी. पंक्ति से पंक्ति की दूरी पर 5-6 सें.मी. गहराई पर करें। असिंचित दशा में 6-8 सें.मी. गहराई में बिजाई करें। बीज से उत्पन्न होने वाले रोगों पर नियंत्रण के लिए बीज उपचार जरूरी है। खुली कंगियारी से संरक्षण के लिए 2 ग्राम बाविस्टन अथवा वीटावैक्स से प्रति कि.ग्रा. बीज उपचारित करें। बंद कंगियारी पर काबू करने हेतु थीरम तथा बाविस्टीन/ वीटावैक्स को 1:1 के अनुपात में मिलाकर 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज के लिए उपयोग करें।

असिंचित एवं सिंचित क्षेत्राें के लिए प्रजातियां 

जौ की छिलका वाली उन्नत प्रजातियां जैसे कि - अंबर, ज्योति, आजाद, के 141, आरडी 2035, आर.डी. 2052, आरडी 2503, आरडी 2508, आरडी 2552, आरडी 2559, आरडी 2624, आरडी 2660, आर.डी. 2668, आरडी 2660, हरितमा, प्रीती, जागृति, लखन, मंजुला, आरएस 6, नरेंद्र जाै1, नरेंद्र जाै 2, नरेंद्र जाै 3, के 603, एनडीबी 1173, एसओ 12 हैं। बिना छिलके वाली उन्नत प्रजातियां गीतांजलि (के-1149), डीलमा, नरेंद्र जौ 4 (एनडीबी 943)

ये भी पढ़ें:
जौ की खेती में फायदा ही फायदा

ऊसरीली भूमि के लिए कुछ बेहतर किस्में  

आजाद, के-141, जे.बी. 58, आर.डी. 2715, आर.डी. 2786, पी.एल. 751, एच.बीएल. 316, एच.बी.एल. 276, बी.एलबी. 85, बी.एल.बी. 56 लवणीय एवं क्षारीय भूमि के लिए एन.डी.बी. 1173, आर.डी. 2552, आर.डी 2794, नरेन्द्र जौ-1, नरेन्द्र जौ-3 हैं।

माल्ट बीयर के लिए उन्नत शानदार किस्में 

प्रगति, तंभरा, डीएल 88 (6 धारीय), आरडी 2715, डीडब्ल्यूआर 28 रेखा (2 धारीय) एवं डी.डब्ब्लूू आर. 28 तथा अन्य प्रजातियां जैसे-डी.डब्ल्यूआर.बी.91, डी.डब्ल्यू.आर.यू.बी. 52, बी.एच. 393, पी.एल. 419, पी.एल. 426, के. 560, के.-409, एन..आरजौ-5 आदि हैं। 

ये भी पढ़ें:
जानिये कैसे करें जौ की बुआई और देखभाल

जौ की फसल में उर्वरकाें का उपयोग इस प्रकार करें  

उर्वरकों का इस्तेमाल मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना बेहतर रहता है। असिंचित दशा के लिए एक हैक्टेयर में 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 20 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 20 कि.ग्रा. पोटाश का इस्तेमाल करें। सिंचित तथा समय से बुआई के लिए प्रति हैक्टर 60 कि.ग्रा. नाइट्राेजन, 30 कि.ग्रा. फास्फाेरस तथा 20 कि.ग्रा. पोटाश और माल्ट प्रजातियाें के लिए 80 कि.ग्रा. नाइट्राेजन, 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 20 कि.ग्रा पोटाश इस्तेमाल करें। ऊसर और विलंब से बिजाई की दशा में नाइट्रोजन 30 कि.ग्रा., फॉस्फेट 20 कि.ग्रा. और जिंक सल्फेट 20-25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर उपयोग करें।
सरकार ने इस रबी सीजन के लिए 11.4 करोड़ टन का लक्ष्य निर्धारित किया है

सरकार ने इस रबी सीजन के लिए 11.4 करोड़ टन का लक्ष्य निर्धारित किया है

तूफान, ओलावृष्टि एवं अल नीनो जैसी खतरनाक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने जलवायु-प्रतिरोधी (गर्मी झेल सकने वाली) DBW 327 करण शिवानी, एचडी-3385 जैसी किस्मों की खेती करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस रबी सीजन में 11.4 करोड़ टन की रिकॉर्ड गेहूं पैदावार का लक्ष्य तय किया गया है। फसलों की पैदावार मिट्टी, मौसम, सिंचाई एवं बेहतरीन किस्म के बीजों पर आश्रित होती है। 

साथ ही, कभी-कभी मौसम की विषम परिस्थितियों की वजह से किसान की फसल की लागत तक भी नहीं निकल पाती है। किसान आर्थिक हालातों से खुद भी गुजरता है। साथ ही, उसका परिवार भी इन चुनौतियों का सामना करता है। ऐसी स्थिति में सरकार ने विषम परिस्थितियों को ध्यान में रख के एक लक्ष्य तय किया है। इस लक्ष्य के अंतर्गत गेहूं की बुवाई (Wheat Sowing) के समकुल क्षेत्रफल के 60 फीसद हिस्से में जलवायु-प्रतिरोधी DBW 327 करण शिवानी, एचडी-3385 एम.पी-3288, राज 4079, DBW-110, एच.डी.-2864, एच.डी.-2932 किस्मों की खेती का लक्ष्य तय किया गया है।

गेहूं की पैदावार का लक्ष्य निर्धारित किया गया है

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन की समस्याओं को देखते हुए रबी सीजन में 11.4 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। वहीं, विगत वर्ष भी सरकार ने समान अवधि में गेहूं का उत्पादन 11.27 करोड़ टन का लक्ष्य रखा था।

ये भी पढ़ें:
गेहूं के उत्पादन में यूपी बना नंबर वन

केंद्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा ने रणनीति तैयार की है

केंद्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा ने रबी फसलों की बुवाई की रणनीति पर चर्चा की है, जिसमें उन्होंने कहा है, कि जलवायु पारिस्थितिकी में आए दिन कुछ न कुछ परिवर्तन हो रहे हैं। इस वजह से फसलों में भी प्रभाव देखने को मिल रहा है, तो ऐसी स्थिति में रणनीति के मुताबिक जलवायु-प्रतिरोधी बीजों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। 

गर्मी-प्रतिरोधी वाली किस्मों के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है

भारत में 800 से ज्यादा जलवायु-प्रतिरोधी किस्में मौजूद हैं। इन बीजों को ‘सीड रोलिंग’ योजना के अंतर्गत सीड चेन में डालने की आवश्यकता है। किसानों को गर्मी-प्रतिरोधी किस्में उगाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त समस्त राज्यों में विशिष्ट इलाकों को चिह्नित करके उत्पादित की जाने वाली अच्छी किस्मों को लेकर नक्शा तैयार करना चाहिए। किस्मों को बेहतर सोच समझ से चयन करना उत्पादन के लिए बेहद महत्वपूर्ण कारक है। किसानों को हमेशा अच्छी और जलवायु प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।

दिवाली से पूर्व केंद्र सरकार गेहूं सहित 23 फसलों की एमएसपी में इजाफा कर सकती है

दिवाली से पूर्व केंद्र सरकार गेहूं सहित 23 फसलों की एमएसपी में इजाफा कर सकती है

लोकसभा चुनाव से पूर्व ही केंद्र सरकार किसानों को काफी बड़ा तोहफा दे सकती है। ऐसा कहा जा रहा है, कि सरकार शीघ्र ही गेहूं समेत विभिन्न कई फसलों की एमएसपी बढ़ाने की स्वीकृति दे सकती है। वह गेहूं की एसएमसपी में 10 प्रतिशत तक भी इजाफा कर सकती है। लोकसभा चुनाव से पूर्व केंद्र सरकार द्वारा किसानों को बहुत बड़ा गिफ्ट दिए जाने की संभावना है। ऐसा कहा जा रहा है, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार रबी फसलों के मिनिमम सपोर्ट प्राइस में वृद्धि कर सकती है। इससे देश के करोड़ों किसानों को काफी फायदा होगा। सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार गेहूं की एमएसपी में 150 से 175 रुपये प्रति क्विंटल की दर से इजाफा कर सकती है। इससे विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार और पंजाब के किसान सबसे ज्यादा लाभांवित होंगे। इन्हीं सब राज्यों में सबसे ज्यादा गेहूं की खेती होती है।

केंद्र सरकार गेंहू की अगले साल एमएसपी में 3 से 10 प्रतिशत वृद्धि करेगी

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार आगामी वर्ष के लिए गेहूं की एमएसपी में 3 प्रतिशत से 10 प्रतिशत के मध्य इजाफा कर सकती है। अगर केंद्र सरकार ऐसा करती है, तो गेहूं का मिनिमम सपोर्ट प्राइस 2300 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच सकता है। हालांकि, वर्तमान में गेहूं की एमएसपी 2125 रुपए प्रति क्विंटल है। इसके अतिरिक्त सरकार मसूर दाल की एमएसपी में भी 10 प्रतिशत तक का इजाफा कर सकती है।

ये भी पढ़ें:
गेहूं समेत इन 6 रबी फसलों पर सरकार ने बढ़ाया MSP,जानिए कितनी है नई दरें?

यह निर्णय मार्केटिंग सीजन 2024- 25 के लिए लिया जाएगा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि सरसों और सूरजमुखी (Sunflower) की एमएसपी में 5 से 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जा सकती है। दरअसल, ऐसी आशा है कि आने वाले एक हफ्ते में केंद्र सरकार रबी, दलहन एवं तिलहन फसलों की एमएसपी बढ़ाने के लिए स्वीकृति दे सकती है। मुख्य बात यह है, कि एमएसपी में वृद्धि करने का निर्णय मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए लिया जाएगा।

एमएसपी में समकुल 23 फसलों को शम्मिलित किया गया है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश पर केंद्र मिनिमम सपोर्ट प्राइस निर्धारित करती है। एमएसपी में 23 फसलों को शम्मिलित किया गया है। 7 अनाज, 5 दलहन, 7 तिलहन और चार नकदी फसलें भी शम्मिलित हैं। आम तौर पर रबी फसल की बुवाई अक्टूबर से दिसंबर महीने के मध्य की जाती है। साथ ही, फरवरी से मार्च एवं अप्रैल महीने के मध्य इसकी कटाई की जाती है।

जानें एमएसपी में कितनी फसलें शामिल हैं

  • अनाज- गेहूं, धान, बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी और जो
  • दलहन- चना, मूंग, मसूर, अरहर, उड़द,
  • तिलहन- सरसों, सोयाबीन, सीसम, कुसुम, मूंगफली, सूरजमुखी, निगर्सिड
  • नकदी- गन्ना, कपास, खोपरा और कच्चा जूट
आगामी रबी सीजन में इन प्रमुख फसलों का उत्पादन कर किसान अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं

आगामी रबी सीजन में इन प्रमुख फसलों का उत्पादन कर किसान अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं

किसान भाइयों जैसा कि आप जानते हैं, कि रबी सीजन की बुवाई का कार्य अक्टूबर से लेकर नवंबर माह तक किया जाता है। परंतु, उससे पूर्व किसान अपने खेतों में मृदा की जांच एवं संरक्षित ढांचे की तैयारी जैसे आवश्यक कार्य कर सकते हैं। भारत में जलवायु परिवर्तन की परेशानी बढ़ती जा रही है, जिसका सबसे बड़ा प्रभाव खेती पर पड़ रहा है। इस समस्या से निजात पाने के लिये आवश्यक है, कि मिट्टी और जलवायु के हिसाब से फसलें एवं इनकी मजबूत प्रजातियों का चुनाव किया जाये। इसके अतिरिक्त खेत की तैयारी से लेकर खाद-उर्वरकों की खरीद तक कई सारे ऐसे कार्य होते हैं, जिनका समय पर फैसला लेना आवश्यक होता है।

रबी सीजन की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है

सामान्य तौर पर
रबी सीजन की बुवाई का कार्य अक्टूबर से लेकर नवंबर तक किया जाता है। परंतु, उससे पूर्व किसान अपने खेतों में मिट्टी की जांच और संरक्षित खेती की तैयारी जैसे आवश्यक कार्य कर सकते हैं। इसके उपरांत मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार, खेतों में अनाज, दलहन, तिलहन, चारे वाली फसलें, जड़ और कंद वाली फसलें, सब्जी वाली फसलें, शर्करा वाली फसलें एवं मसाले वाली फसलों की खेती की जा सकती है। यह भी पढ़ें: जानें रबी और खरीफ सीजन में कटाई के आधार पर क्या अंतर है

रबी सीजन की प्रमुख अनाज फसलें

रबी सीजन की प्रमुख नकदी और अनाज वाली फसलों में गेहूं, जौ, जई आदि शम्मिलित हैं। किसान भाई इन फसलों की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं।

रबी सीजन की दलहनी फसलें

रबी सीजन की प्रमुख दलहनी फसलें प्रोटीन से युक्त होती हैं। इसका प्रत्येक दाना किसानों को अच्छी आमदनी दिलाने में सहायता करता है। इन फसलों में चना, मटर, मसूर, खेसारी इत्यादि दालें शम्मिलित हैं।

रबी सीजन की तिलहनी फसलें

तिहलनी फसलें तेल उत्पादन के मकसद से पैदा की जाती हैं, जिनसे किसानों को काफी अच्छी आमदनी होती है। रबी सीजन की प्रमुख तिलहनी फसलों में सरसों, राई, अलसी, तोरिया, सूरजमुखी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

रबी सीजन की चारा फसलें

पशुओं के लिए प्रत्येक सीजन में पशु चारे का इंतजाम होता रहे। इसी मकसद से चारा फसलों की बुवाई की जाती है। रबी सीजन की इन चारा फसलों में बरसीम, जई और मक्का का नाम शम्मिलित है।

रबी सीजन की मसाला फसलें

रबी सीजन के अंतर्गत कुछ मसालों की भी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इनमें मंगरैल, धनियाँ, लहसुन, मिर्च, जीरा, सौंफ, अजवाइन आदि सब्जियां शम्मिलित हैं।

रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसलें

अधिकांश किसान पारंपरिक फसलों को छोड़कर बागवानी फसलों की खेती करते हैं। विशेष रूप से बात करें सब्जी फसलों की तो यह कम समय में ज्यादा मुनाफा देती हैं। रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसलों में लौकी, करेला, सेम, बण्डा, फूलगोभी, पातगोभी, गाठगोभी, मूली, गाजर, शलजम, मटर, चुकन्दर, पालक, मेंथी, प्याज, आलू, शकरकंद, टमाटर, बैगन, भिन्डी, आलू और तोरिया आदि फसलें उगाई जाती हैं।
भारत सरकार द्वारा 6 रबी फसलों की एमएसपी में की गई बढ़ोतरी से किसानों में खुशी की लहर

भारत सरकार द्वारा 6 रबी फसलों की एमएसपी में की गई बढ़ोतरी से किसानों में खुशी की लहर

भारत सरकार ने सरसों, गेहूं, मसूर और चना समेत 6 रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी कर दी है। इससे विशेष कर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के करोड़ों किसानों को लाभ मिलेगा। साथ ही, किसानों की आमदनी भी बढ़ जाएगी। केंद्र सरकार की तरफ से किसानों को दिवाली का शानदार तोहफा प्रदान किया गया है। उसने गेहूं सहित 6 रबी फसलों की एमएसपी बढ़ा दी है। इससे भारत के करोड़ों किसानों का लाभ मिलेगा। उनकी आमदनी में भी काफी इजाफा होगा। विशेष बात यह है, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा
रबी फसलों की एमएसपी में 2% से लगाकर 7% फीसद तक की वृद्धि की है। वहीं, केंद्रीय कैबिनेट द्वारा एमएसपी की बढ़ोतरी पर मुहर भी लग चुकी है। मतलब कि फसल सीजन 2024- 25 के लिए जब रबी फसलों की खरीद आरंभ होगी, तो किसानों को नवीन एमएसपी की दर से धनराशि मिलेगी।

रबी फसल में आने वाली फसलें

गेहूं, अलसी, सरसों, कुसुम, मटर, चना एवं जौ रबी फसल में आते हैं। इनकी बुवाई अक्टूबर माह से नवंबर माह के बीच की जाती है। विशेष बात यह है, कि रबी फसलों की सर्वाधिक खेती उत्तर भारत के राज्यों में ही की जाती है। गेंहू की बात करें तो उत्तर प्रदेश इसका सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कहा जाता है। इसके पश्चात मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार पंजाब, हरियाणा और राजस्थान का नंबर आता है। वर्तमान में केंद्र सरकार ने गेहूं की एमएसपी में 150 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बढ़ोतरी की है। इसके उपरांत गेहूं की एमएसपी रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए 2275 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। मतलब, कि पीएम मोदी के कैबिनेट के निर्णय से , गुजरात, बिहार, यूपी, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के करोड़ों किसानों को काफी ज्यादा लाभ मिलेगा।

ये भी पढ़ें:
दिवाली से पूर्व केंद्र सरकार गेहूं सहित 23 फसलों की एमएसपी में इजाफा कर सकती है

भारत में सरसों का कहाँ और कितना उत्पादन किया जाता है

भारत में इसी प्रकार सरसों की पैदावार में राजस्थान अव्वल राज्य है। इसकी भारत में कुल उत्पादित सरसों में 46.7 फीसद भागीदारी है। इसका मतलब यह हुआ है, कि राजस्थान एकमात्र 46.7 फीसद सरसों की पैदावार करती है। इसके पश्चात उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पश्चिम बंगाल का नंबर आता है। फिलहाल, केंद्र सरकार ने सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से इजाफा किया है। इसके साथ ही सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6550 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुँच चुका है। ऐसी स्थिति में इन राज्यों के किसानों को बेहद लाभ मिलेगा।

सरसों का उत्पादन क्षेत्रफल बढ़ने से महंगाई में गिरावट आएगी

साथ ही, कृषि विशेषज्ञों का कहना है, कि भारत में खपत के अनुसार सरसों की पैदावार काफी कम होती है। ऐसी परिस्थिति में विदेश से खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है। परंतु, केंद्र सरकार द्वारा एमएसपी में बढ़ोतरी करने का निर्णय समुचित समय पर लिया गया है। क्योंकि, वर्तमान में सरसों की बिजाई का सीजन चल रहा है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि एमएसपी में इजाफा होने से कृषक अधिक कमाई करने के लिए अधिक क्षेत्रफल में सरसों की बिजाई करेंगे। इससे भारत में सरसों का उत्पादन बढ़ जाएगा, जिससे सरसों के तेल की कीमतों में गिरावट आ सकती है। इससे महंगाई में भी काफी गिरावट आएगी।
आने वाले दिनों में मौसम के चलते किसानों को नुकसान या होगा शानदार लाभ

आने वाले दिनों में मौसम के चलते किसानों को नुकसान या होगा शानदार लाभ

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि सर्दियों ने फिलहाल दस्तक दे दी है। वर्तमान में तापमान फसलों के अनुकूल होने पर फायदा होगा। वहीं, तापमान अनुकूल ना होने की वजह से फसल में झुलसा जैसी समस्या का खतरा हो सकता है। भारत में फिलहाल मौसम में बदलाव हो रहा है। गर्मियों के पश्चात अब तीव्रता से सर्दी के मौसम ने दस्तक दे ड़ाली है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, इस साल भारत में मानसून काफी सामान्य रहा। मानसून का सामान्य रहना कृषकों के लिए काफी शानदार समाचार था। दरअसल, इसकी वजह से फसलों को शानदार बारिश मिली जिसके परिणामस्वरूप फसलों का उत्पादन भी अच्छा हुआ।  राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो आज सुबह तापमान में कमी देखी गई, जिससे ठंड भी बढ़ी है। IMD के अनुसार, तो दिल्ली में दिसंबर के प्रथम सप्ताह का तापमान सामान्य रहेगा। वहीं, तापमान में ज्यादा गिरावट की संभावना काफी कम है। मौसम विभाग के अनुसार, 4 दिसंबर तक राजधानी दिल्ली का अधिकतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस है। वहीं, न्यूनतम तापमान 9 डिग्री सेल्सियस तक रहेगा। 

आने वाले दिनों में ठंड बढ़ने से फसलों को होगा फायदा  

खबरों की मानें तो आगामी दिनों में ठंड काफी बढ़ेगी। फसलों में ठंड से तब तक लाभ होता है, जब तक तापमान फसल की सहनशीलता के अनुकूल हो। सर्दी के दिनों में फसलों में रोगों एवं कीटों का संक्रमण कम होता है। फसलों में पौष्टिक तत्वों का संचय भी काफी बढ़ता है। साथ ही, फसलों का उत्पादन भी बढ़ जाता है। साथ ही, जब फसलों के मुताबिक तापमान नहीं होता है, तो ऐसी स्थिति में हानि होती है। अत्यधिक ठंड की वजह से फसलों का रंग तथा आकार परिवर्तित हो सकता है। फसलों में सूखा, झुलसा जैसी परेशानियां सकती हैं। 

ये भी पढ़ें:
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने कई राज्यों में बारिश को लेकर अलर्ट जारी किया
इसके अतिरिक्त फसलों की पैदावार कम हो जाती है। किसानों के लिए मौसम की ज्यादा जानकारी के लिए IMD की आधिकारिक वेबसाइट अथवा फिर मोबाइल ऐप का उपयोग कर सकते हैं। इससे वह वक्त रहते ही मौसम की जानकारी हांसिल हो पाऐगी। साथ ही, किसान भाई अपनी फसलों की सुरक्षा कर सकते हैं। 

किसान भाई फसल से बेहतर उत्पादन पाने के लिए इन उपायों को अपनाऐं 

किसान भाई अपनी फसलों से बेहतरीन उत्पादन पाने के लिए फसलों की बुवाई सही समय पर करें। इसके साथ-साथ फसलों की नियमित तौर पर सिंचाई करें।  फसलों को कीटों एवं रोगों से संरक्षित करने के लिए समय-समय पर दवाओं का छिड़काव अवश्य करें। ठंड के दौरान फसलों को ढ़कने के लिए प्लास्टिक की चादर या शेड का उपयोग अवश्य करें।
किसान भाई अपनी रबी फसलों का पीएम फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमा कराऐं

किसान भाई अपनी रबी फसलों का पीएम फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमा कराऐं

कृषक भाई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का फायदा उठाने के लिए यहां दी गई प्रक्रिया को पूर्ण कर सकते हैं। यहां आवश्यक दस्तावेजों के बारे में बताया गया है, जिनकी सहायता से कृषक योजना का फायदा हांसिल कर सकते हैं। सरकार की तरफ से बहुत सारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं, जिनसे कृषकों को काफी फायदा हांसिल हो रहा है। इन्हीं में से एक योजना का नाम प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) है। इस योजना के माध्यम से कृषकों को खड़ी फसलों को क्षति के विरुद्ध बीमा कवर प्रदान किया जाता है। योजना के अंतर्गत रबी फसलों के लिए बीमा कवर का प्रीमियम 1.5% प्रतिशत है। साथ ही, सरकार 50% प्रतिशत अनुदान प्रदान करती है, जिसका मतलब ये है, कि कृषकों को महज 0.75% प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है। वर्तमान में फसल बीमा सप्ताह चल रहा है। किसान भाई कवर लेने के लिए शीघ्रता से फसलों का बीमा करा लें।  

जानिए इसमें कौन-कौन से नुकसान कवर होते हैं

  • सूखा
  • बाढ़
  • ओलावृष्टि
  • चक्रवात
  • कीट
  • बीमारियां 


ये भी पढ़ें:
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में अब ट्रैक्टर, तालाब और पशुओं को भी कवर करने की तैयारी

कृषकों को क्या फायदा मिल सकेगा  

इसके अंतर्गत कृषकों को खड़ी फसलों की हानि के विरुद्ध वित्तीय सुरक्षा मुहैय्या की जाती है। साथ ही, ये कृषकों को अपनी आमदनी को बरकरार रखने एवं खेती जारी रखने में सहायता करता है। इसके अतिरिक्त ये कृषकों को आत्मनिर्भर करने में सहायता करता है। 

फसल बीमा हेतु आवश्यक दस्तावेज 

  • फसल बीमा का आवेदन फॉर्म
  • फसल बुआई का प्रमाण-पत्र
  • खेत का नक्शा
  • खेत का खसरा या बी-1 की प्रति
  • आधार कार्ड
  • बैंक खाता विवरण अथवा पासबुक
  • पासपोर्ट साइज फोटो


ये भी पढ़ें:
किसानों के लिए इस राज्य सरकार की बड़ी घोषणाएं, फसलों के नुकसान पर मिलेगा इतना मुआवजा

आवेदन की क्या प्रक्रिया है 

स्टेप 1: सर्व प्रथम उम्मीदवार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की आधिकारिक वेबसाइट https://pmfby.gov.in/ पर जाएं।  स्टेप 2: इसके पश्चात उम्मीदवार होम पेज पर पंजीकरण करें।  स्टेप 3: फिर किसान भाई का पंजीकरण पूरा होने के बाद Apply as a Farmer के विकल्प को चुनना है।  स्टेप 4: इसके बाद एक ऑनलाइन फॉर्म मिल जाएगा, जहां मांगी गई सारी जानकारियां ठीक तरह से भरनी होंगी।  स्टेप 5: अब फॉर्म को भरने के बाद प्रीव्यू करें, जिससे गलतियों का पता चल सके।  स्टेप 6: फिर फॉर्म ठीक तरह से भरा गया है, तो दस्तावेज को अटैच करके सब्मिट कर दें।
बढ़ती ठंड के मौसम में फसलों पर लग रहे कीड़ों से कैसे बचाऐं फसल

बढ़ती ठंड के मौसम में फसलों पर लग रहे कीड़ों से कैसे बचाऐं फसल

सर्दियों के दिनों में भी फसलों पर कीड़ों का प्रभाव देखने को मिल सकता है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को कुछ आवश्यक बातों का खास ध्यान रखना पड़ेगा। बतादें, कि कुछ कृषकों का मानना है, कि सर्दियों के दौरान फसलों के अंदर कीट नहीं लगते हैं। परंतु, सच ये है कि सर्दी के मौसम में भी आपकी फसल पर कीड़े लग सकते हैं। कीड़ों से फल का संरक्षण करने के लिए आपको कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखना पड़ेगा।


विशेषज्ञों के मुताबिक, सर्दी के दौरान फसलों में कीट लगने की दिक्कत एक सामान्य बात है। बतादें, कि इस समय तापमान कम होता है, इस कीटों के लगने की घटनाएं कम हो जाती हैं। परंतु, ये पूरी तरह से समाप्त नहीं होते हैं। कुछ कीड़े सर्दियों में भी फसल को काफी हानि पहुँच सकती है, जिनसे संरक्षण के लिए कृषक कुछ विशेष बातों का ध्यान रख सकते हैं।


किसान कृषि विशेषज्ञों की निगरानी में करें खेती 

सर्दियों के मौसम में किसान भाई फसलों की नियमित तौर पर निगरानी करें। कीट लगने के शुरुआती लक्षणों पर विशेष ध्यान दें। साथ ही, किसान रोग तथा कीटों के नियंत्रण के लिए आवश्यक कार्य करें। यदि आपके खेतों में खड़ी फसल में कीड़े लग गए हैं, तो आवश्यक कीटनाशकों का उचित समय पर उपयोग करें। बतादें, कि उन्हें उचित मात्रा में छिड़कें, जिसके लिए कृषक भाई कृषि विशेषज्ञों की सहायता ले सकते हैं। 


ये भी पढ़ें: सरसों की फसल में प्रमुख रोग और रोगों का प्रबंधन


किसान भाई क्या छिड़काव कर सकते है ?

विशेषज्ञों का कहना है, कि मौसम में परिवर्तन की वजह फसलों पर कीड़े लग सकते हैं। किसान भाई कीड़ों से सहूलियत पाने के लिए ट्राईकोडर्मा, हारजोनियम दवा का छिड़काव कर सकते हैं। कीड़े लगने से फसलों की पैदावार पर प्रभाव पड़ सकता है। कीटनाशक दवा का फसल पर छिड़काव करने से इस चुनौती को दूर किया जा सकता है। भारत में सर्दियों का मौसम अक्टूबर से लगाकर मार्च तक रहता है। ये तापमान रबी की फसलों के लिए अत्यंत अनुकूल होता है। रबी सीजन की प्रमुख फसलें बाजरा, मटर, सरसों, टमाटर, गेहूं, जौ और चना इत्यादि है ?